मेरे मन की चलती तो ख़ाली सड़कों पर हम चलते और मेरे हाथ में तुम्हारे हाथ होते,
पर मेरे मन की कहा चलती, मैं अकेला तुम अकेली और ये भीड़ वाली सड़क होती है।
मेरे मन की चलती तो तुम खुली आसमान के नीचे मेरे कंधे पे सर रखती और हम तारे धुँड़ते,
पर मेरे मन की कहा चलती, गिनते तो हम सड़क के किनारे खली जगह ही है।
मेरे मन की चलती तो तुम मेरे सिने पे अपने उँगलीयो से अपना दिल बनाती,
पर मेरे मन की कहा चलती, यहाँ हम बनाते तो सिर्फ़ ख़याल ही है।
मेरे मन की चलती तो तुम मेरे पास होती,
पर मेरे मन की कहा चलती, चलती तो समय की है, क्यों की समय ही बलवान है।
Tuesday, April 24, 2018
मेरे मन की कहा चलती?
Posted by Kishore Parhi at 9:13 AM 0 comments
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